Sunday, September 11, 2011

काम के बिना इंसान सिर्फ सांस लेता है, योगेंद्र रस्तोगी, मेरठ



साठ के दशक से आज तक भगवान के जो रूप हम देखते हैं या अपने घरों की दीवारों पर लटकाते हैं, उनमें से ज्यादातर देश के नामचीन धार्मिक चित्रकला के पुरोधा योगेंद्र रस्तोगी के बनाए होते हैं। सात दशक पार कर चुके योगेंद्र रस्तोगी पिछले 50 सालों में हजारों की तादाद में धार्मिक चित्र बना चुके हैं और आज भी वह इस चित्र पंरपरा को गति दे रहे हैं। पेश हैं, उनसे  बातचीत के कुछ अंश-
-कला से जुड़ाव कैसे हुआ?
मुझे बचपन से चित्रकारी का शौक था। 1959 में महात्मा गांधी का पहला चित्र बनाया था। शुरुआती दौर में आॅयल, वाटर कलर और एक्रेलिक माध्यम से चित्र बनाए। शुरू में एक साल में 40 से 50 चित्र बनाए, लेकिन अब उम्र के मुताबिक काम करता हूं, तो तकरीबन 20-21 चित्र बना लेता हूं। अब सिर्फ पोस्टर और एक्रेलिक कलर के माध्यम से ही चित्र बनाता हूं।
-आपने किन पत्र-पत्रिकाओं के लिए चित्र बनाए और उपलब्धियां कब जुड़नी शुरू हुर्इं?
मैंने कई धार्मिक किताबों के, पत्र-पत्रिकाओं के लिए चित्र बनाए। 1963 में जब चीन युद्ध चल रहा था, तो मैंने एक चित्र बनाया 'लैंड टू डिफेंड'। यह चित्र लोगों के बीच चर्चा का विषय बना। इस चित्र के लिए मुझे त्रिमूर्ति भवन, दिल्ली बुलाया गया, वहां पं जवाहर लाल नेहरू ने यह चित्र 5000 रुपये में खरीदा, जो कोलोनेशन लिथोप्रेस शिवाकाशी से प्रकाशित हुआ। 
-चित्रकला के कई विषयों को छोड़कर सिर्फ धार्मिक चित्रों की तरफ ही क्यों रुख किया?
मैंने महसूस किया कि भारतीय संस्कृति में देवी-देवताआें की काफी मान्यता है, क्यों न इसी विषय के माध्यम से लोगों के बीच जाऊं। और मैं देवी-देवताओं के चित्रों के साथ लोगों के घरों की दीवारों तक पंहुच गया, जहां लोग अपने घरों की दीवारों पर मेरे बनाए भगवान के चित्रों को आज भी सहेज कर लटकाते हैं। लोगों के घरों में चार-चार पीढ़ियों के पहले के समय के मेरे बनाए चित्र मौजूद हैं। यहां तक कि मेरे बनाए पहले के चित्रों की तमाम प्रकाशन आज कापी छाप रहे हैं। खुशी मिलती है और मेरी कला की सार्थकता भी यही है।
-आपके साथी चित्रकार कौन रहे और वह आज क्या कर रहे हैं?
मेरे साथ के चित्रकार रघुवीर गुलागांवकर, शोभा सिंह, एसएम पंडित और इंद्र शर्मा रहे हैं, जो आज इस दुनिया में ही नही हैं, लेकिन उनके बनाए चित्र, उनकी कला हमारे बीच आज भी मौजूद है। शोभा सिंह के प्रसिद्ध चित्र सोहनी-महिवाल और हीर-रांझा रहे, जो लाखों की संख्या में बिके। बाद में वैसा चित्र कोई नहीं बना पाया। उनके ज्यादातर चित्र सूफी संतों पर आधारित होते थे।
-क्या वजह है जो आज के कलाकारों की कृतियां उन्हें प्रसिद्धि नहीं दिला पातीं?
आज के कलाकारों में सब्र नहीं है। वे संघर्ष और सीखने की ललक न होने की वजह से पिछड़ रहे हैं। वैसे कंप्यूटर के जमाने में कौन इतनी मंहगी पेंटिग्स खरीदता है।
-इस उम्र में भी इतना बारीक काम कैसे कर पाते हैं?
अपने शुरुआती समय में मैं सत्रह घंटे काम करता था। दो-तीन घंटे में अपनी जीविका चलाने के लिए व्यावसायिक काम करता था। आज 74 साल का हो गया हूं, उतनी मेहनत नहीं कर पाता। हो सकता है यह सब मेरे सात्विक रहन-सहन की वजह से हो। आज तक किसी तरह का नशा नहीं किया, हां काम का नशा है, आज भी जब काम करता हूं तो समय नहीं देखता।
-व्यावसायिक तौर पर पहली बार कब प्रस्ताव आया?
1967 में पार्किंसन प्रिंटर्स ने 10 हजार रुपये महीना, भोजन-आवास की सुविधा के एवज में माह में चार चित्र का प्रस्ताव रखा, लेकिन मुझे मेरठ से शुरू से लगाव रहा, सो मैंने मना कर दिया। फिर कंपनी ने मेरठ से हर माह आने-जाने के  लिए एयर टिकट की सुविधा का प्रस्ताव भी साथ में दिया, फिर भी मैंने न ही कहा। हालांकि इस प्रस्ताव से व्यावसायिक चित्रकार जरूर बनता, लेकिन मेरी पहचान के साथ मुझे आत्मसंतुष्टि न होती।
-आप सबसे बड़े प्रकाशन में कब छपे?
2005 में पहली बार मैं इंग्लैंड के गोलका बुक्स प्रकाशन में छपा। इसके प्रकाशक इंग्लैंड से दिल्ली और दिल्ली से मुझे खोजते-खोजते मेरठ आ धमके। वह 19 लोगों का दल था, जिसमें प्रकाशन की पूरी टीम थी। वह एक किताब के चित्र बनवाने के संदर्भ में मेरे पास आए थे। इस्कान की भगवद्गीता पर आधारित किताब छापना चाहते थे, जिसमें विश्व के सात चित्रकार थे। हर चित्रकार को एक चेप्टर के लिए चित्र बनाने थे, लेकिन उन्होंने मुझसे दो चेप्टर के चित्र बनवाए। भगवद्गीता के संदर्भों के चित्र बनाने के लिए मैंपे पहले एक-एक घटना को समझा, फिर बनाया। यहां तक कि मैं हस्तिनापुर का भौगोलिक अध्ययन भी करने गया। मेरे सामने चुनौती थी कि मुझे काल्पिनक घटनाओं पर आधारित चित्र बनाने पड़े। मैंने बनाए और यह चित्र काफी सजीव और महाभारतकालीन परिवेश से जुड़े थे। इसका एक चित्र मुझे आज भी पसंद है। वह चित्र कौरवों और पांडवों के बीच के युद्ध का है। यह चित्र भगवतम स्टोरीज नाम की पुस्तक में छपा। जो देश के 22 हजार पुस्तकालयों में मौजूद है।
-आपने कभी प्रदर्शनी लगाई?
मैंने आज तक कोई प्रदर्शनी नहीं लगाई। काम से संतोष है, लोग जानते हैं कि घोर व्यावसायिक हूं नहीं। भगवान में पूरी श्रद्धा है, इसलिए उसने जो दिया, जैसा दिया बहुत है। भगवान के स्वरूपों को बनाते-बनाते उनसे सीधा जुड़ा हुआ महसूस करता हूं।
-नवोदित कलाकारों के लिए कोई संदेश?
मैं उन्हें सब्र और मेहनत से काम करने के लिए कहंूगा। कलाकार को किसी का मोहताज नहीं होना चाहिए। अच्छा वो होता है, जो सबके लिए अच्छा हो। जीवन तब तक है, जब तक आप काम कर रहे हैं। काम के बिना शरीर सिर्फ सांस लेता है।

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