Sunday, September 11, 2011

ऊंचाइयों का नाम नौनिहाल-प्रतिपाल


जिंदगी के संघर्ष के दिनों में भी इंसान अपने जुनूनी कामों को जारी रखता है। वह उतार-चढ़ाव के बीच भी अपने शौक के जरिए लोगों के दिमाग पर छाप छोड़ देता है। जिंदगी के सात दशक गुजार चुके  प्रतिपाल सिंह और नौनिहाल सिंह। प्रतिपाल सिंह ने बचपन में साईकिल का साथ किया और आज भी साइकिल से ही चलते हैं। दोनों ही संघर्षों में एक साथ सुख-दुख के साथी रहे। प्रतिपाल और नौनिहाल को बचपन से साहसी कामों में रुचि थी। बचपन में लंबी दूरी की साइकिलिंग कब जुनून में बदल गई, उन्हें खुद नहीं पता चला।
      दोस्ती क ा सफर हमेशा साथ रहा, वह नौकरी करने आर्डिनेंस फैक्ट्री भी एक साथ गए। यहां रिटायरमेंट तक एक साथ परिवार के भरण-पोषण की जुगत लगाते रहे। दोनों का साहस भी भी उफान मार रहा था, सो कंपनी की तरफ से भी पर्वतारोहण और ट्रैकिंग के लिए अक्सर साथ जाते थे। यहां कंचनजंगा ट्रैकिंग क्लब का गठन कर साइकिलिंग, पर्वतारोहण और ट्रैकिंग के लिए जाते रहे। दोनों दोस्तों का साहस पहली बार तब रंग लाया, जब दोनों ने 1986 में लेह-लद्दाख की पर्वत चोटियों तक का सफर साईकिल से पूरा किया। यह सफर दिल्ली से 18380 किमी का था, लेकिन अपने नौ सदस्यीय दल के यह सफर तय कर तिरंगा फहराकर विश्व कीर्तिमान बनाया। उस समय अंतर्राष्ट्रीय संगठन इंडियन मांउटेनियरिंग फाउंडेशन ने दुनिया में पहली बार इतनी ऊंचाई पर पहुंचने पर प्रमाण-पत्र भी दिया। 
    दोस्त के साथ ऊंचाईयों का सफर अभी चल ही रहा था कि दोनों ने मन बनाया कि क्यों न बद्रीनाथ, हेमकुंड साहब, रूपकुंड साहब की यात्रा साइकिल से ऊंचाइयां जाए। 1972 में दोनों ने एक बार फिर बचपन के साहस का परिचय दिया और यह दूरी भी साइकिल से तय की। साइकिल से ऊंचाइयां तय करते प्रतिपाल कहते हैं कि बचपन  में हम इतिहास, नागरिक शास्त्र और भूगोल जैसी किताबों में पर्वत और घाटियों के चित्र देखते, तो तभी तय कर लिया था कि एक दिन यहां जाएंगे जरूर। बचपन के उस सपने को बड़े होने पर साकार किया। हमेशा नई ऊंचाइयां तय करने पर बार-बार साहस बढ़ता गया और ऊंचाइयां तय करते गए। वह कहते हैं कि उस जमाने में हमारे समाचार देश की मुख्य पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते तो खुशी होती थी। इसके अलावा ट्रैकिंग के लिए कैलाश पर्वत, पार्वती लेक,हमतापास, पिंडारी ग्लेशियर, मैकटेली बेस कैंप और एवरेस्ट बेस कैंप तक ट्रैकिंग की और तिरंगा फहराया।
कई पर्वतारोहण और साईकिंलिग के लिए समय-समय पर देश में सम्मानित किया गया। सेना के अधिकारियों ने, कंपनी के अधिकारियों ने सम्मान दिया, जिस प्रदेश में पहुंचते वहां सम्मान मिलता। एक बार तो फिल्म कलाकार देव आनंद शूटिंग कर रहे थे हमें गुजरते देख हमारा हौसला बढ़ाया। शूटिंग में व्यस्तता के बावजूद उन्होंने हमारे साथ कुछ दूर साईकिल भी चलाई।      
            अतीत को याद कर प्रतिपाल कहते हैं कि जब हम लोगों ने विश्वकीर्तिमान बनाया तो टीवी पर प्रसारण हुआ था। उस समय जेबी रमण समाचार वाचक थे, उन्होने हमारे समाचार लोगों तक पहुंचाए। केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह पाटिल ने सम्मान दिया। उस समय हमारे घरों में परिवार के लोग काफी प्रसन्न हुए और लौटने पर भव्य स्वागत हुआ था। 60 साल बाद अपने इस साहस की अनदेखी होने पर वह कहते हैं कि खेल निदेशालय या सरकार की तरफ से कभी हमें समुचित आर्थिक मदद नहीं मिली। अब तो दुनिया में एक ही खेल है, जो व्यावसायिक है। जज्बा और साहस सरकारी संवेदनहीनता की वजह से दिख नहीं पाता। आज भी देश में होनहारों की कमी नहीं है। इस उम्र में अगर आज भी मदद मिले तो हम अभी और ऊं चाइयां तय करके दिखा सकते हैं। वह लंबी सांस लेते हुए कहते हैं कि दोस्त साइकिलिंग के लिए जमुनोत्तरी तक अभी फिर जा रहा हूं। साहस का सफर में ऊंचाइयों को छूने का सफर मेरे मरने के बाद ही रुक सकता है।

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