Friday, August 17, 2012

आजादी से जुड़े चंद लम्हों की दास्तां कहता तिरंगा

विक्टोरिया पार्क मेरठ में कर्नल शहनवाज, पंडित जवाहर लाल नेहरु, सुचेता कृपलानी, आचार्य जेबी कृपलानी, कर्नल गणपत राम नागर
-  1946 में कांग्रेस के आखिरी अधिवेशन का गवाह
-  नेहरू, आचार्य कृपलानी और शख्श्यितों ने फहराया था तिरंगा
        आजादी के समय की तमाम धरोहरें संग्राहलयों में संजोई गई हैं। जिसमें आजादी के समय के तमाम ऐतिहासिक साक्ष्य मौजूद हैं। आजादी से जुड़े चंद लम्हों को एक धरोहर के रुप में मेरठ में भी रखा गया है। 23 नवंबर 1946 में आजादी के पहले मेरठ के विक्टोरिया पार्क में आयोजित कांग्रेस अधिवेशन के दौरान फहराया गया 14 फीट चौड़ा और 9 फीट लंबा तिरंगा फहराया गया था। यह झंडा हस्तिनापुर निवासी देव नागर के पास किसी धरोहर से कम नहीं है। इस ऐतिहासिक झंडे से देश के चंद महत्वपूर्ण लोगों की यादें जुड़ीं हैं। जिनमें पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु, शहनवाज खान, आचार्य कृपलानी और सुचेता कृपलानी के नाम झंडे के इतिहास से जुड़े हैं।
         द्वितीय विश्वयुद्ध में आजाद हिंद फौज के मलाया डिवीजन के कमांडर रहे, स्व कर्नल गणपत राम नागर के परिवार के लिए यह झंडा किसी अमूल्य धरोहर से कम नहीं है। गॉडविन पब्लिक स्कूल में उपप्रधानाचार्य के पद पर कार्यरत देव नागर स्व कर्नल गणपत राम नागर के पौत्र  हैं। वे बताते हैं कि आजादी के पहले विक्टोरिया पार्क में इस तिरंगे को देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू, जनरल शहनवाज खान, तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष आचार्य जेबी कृपलानी  और सुचेता कृपलानी के हाथों फहराया गया था। झंडारोहण के दौरान साथ में गणपत राम नागर भी मौजूद थे।
         गणपत राम का जन्म 16 अगस्त 1905 में मेरठ में केसरगंज निवासी विष्णु राम नागर के घर हुआ था। उन्होंने मेरठ के राजकीय स्कूल से हाईस्कूल और मेरठ कॉलेज से बीए की पढ़ाई की। वे हॉकी-क्रि केट के खेल में शानदार प्रदर्शन के लिए भी जाने जाते थे, इसलिए वे दोनों खेलों के कप्तान भी रहे। उनकी मेहनत, ईमानदारी और ऊर्जा को देखकर मेरठ कॉलेज के तत्कालीन प्रिंसीपल कर्नल ओडोनल ने नागर को सैंडहर्स्ट कॉलेज इंग्लैंड में पढ़ाई के लिए भेजा। वहां वे दो साल तक आर्मी अफसर का प्रशिक्षण लेकर ब्रिटिश आर्मी में 1928 में किंग कमीशन अफसर के पद पर नियुक्त हुए। 1939 में सिंगापुर के पतन पर अंग्रेजों की बर्बरता को देख उन्होंने विद्रोह कर दिया, इससे अंग्रेजी हुकूमत ने इन्हें बंदी बना लिया। रिहा होने के बाद वे नेताजी सुभाष चंद बोस की आजाद हिंद फौज में इन्हें मेजर जनरल की पोस्ट से नवाजा गया। स्वतंत्रता सेनानी गणपत राम नागर के इकलौते बेटे स्व सूरज नाथ नागर भी कुमाऊं रेजीमेंट में 1950 से 1975 तक कर्नल के पद पर रहे।
          गणपत राम नागर के पौत्र देव नागर कहते हैं कि मेरे पिता स्व सूरज नाथ नागर कहते थे कि 'दादा से विरासत में मिला यह तिरंगा मेरे लिए देश की आजादी से जुड़ी धरोहर है। विक्टोरिया पार्क में यह झंडा जब फहराया जा रहा था, उस वक्त मैं वहां अपने पिता के साथ मौजूद था। प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु ने कहा था कि ' हमने इस तिरंगे के नीचे आजादी की लड़ाई लड़ी है, यही वतन का झंडा बनेगा।' इस ऐतिहासिक तिरंगे के संदर्भ में फिल्म डिवीजन दिल्ली ने एक डाक्यूमेंट्री भी बनाई थी, जिसे सिनेमाघरों और टीवी चैनल पर प्रसारित किया जाता रहा है। गणपत राम नागर पर आधारित डिवीजन द्वारा निर्मित डाक्यूमेंट्री फिल्म समय-समय पर प्रसारित की जा चुकीं हैं। उनके योगदान और उनपर किए गए शोध पर पुस्तकें  आज भी मेरठ के तिलक पुस्तकालय में उपलब्ध हैं। स्व कर्नल गणपत राम का परिवार जिसमें स्व कर्नल सूरज नाथ नागर की पत्नी और देवनागर की मां अनुराधा नागर व जुड़वा भाई गुरु नागर सपरिवार हस्तिनापुर डिफेंस कॉलोनी में रहते हैं। जहां चौथी पीढ़ी के सदस्य रहते हैं, वो इस तिरंगे की दास्तां जुबानी सुनते हैं।

पंजाब, कालका और तूफान मेल से हिल गई थी ब्रिटिश हुकूमत

         


         भारत में 1857 से 1947 तक के संघर्ष में भारतीय वीरंगनाआें के बिना आजादी का ख्वाब शायद अधूरा होता। जिन्होंने अपने तीव्र और कड़े संघर्ष से ब्रिटिश शासन की चूलें हिलाकर रख दी। देशभर में तमाम महिला क्रांतिकारियों के समानांतर मेरठ में भी कुछ वीरंगनाआ ने अंग्रेजों को लोहे के चने चबाने पर मजबूर कर दिया था।
            मेरठ में 1930 के दौर में प्रमुख महिला क्रांतिकारियों की भूमिका काफी महत्वपूर्ण रही है। उनके आजादी के संघर्ष आज भी इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं। इन महिला क्रांतिकारियों के तेज संघर्ष को देखकर ब्रिटिश हुकूमत की चूलें हिलाकर रख दीं थीं। जिसे तत्कालीन ब्रिटिश हुकूमत की खुफिया रिपोर्ट में दर्ज किया गया है। इनके संघर्ष की तुलना ब्रिटिश काल की सबसे तेज गति में चलने वाली रेलगाड़ियों से किया जाता था। इसमें तूफान मेल, पंजाब मेल और कालका मेल के नाम से इन महिला क्रांतिकारियों की संघर्ष की गति को जनमानस ने शिद्दत के साथ महसूस किया। इनमें मेरठ की तीन महिला क्रांतिकारी उर्मिला शास्त्री को तूफान मेल कहा जाता था, वह इसलिए क्योंकि जन आंदोलन के दौरान भीड़ में तेजी से भागती हुई चलती थीं। दूसरी मेरठ की ही प्रकाशवती सूद थीं जिन्हें लोग पंजाब मेल कहते थे, वह इसलिए क्योंकि ये पंजाबी थीं और अंग्रेज अधिकारियों के सामने अद्भुत साहस का परिचय देती थीं। मेरठ की तीसरी महिला क्रांतिकारी कुसुमलता गर्ग थीं जिन्हें लोग कालका मेल कहते थे, इन्हें कालका मेल इसलिए कहा जाता था क्योंकि ये सांवली थीं यह भीड़ के बीच लाखों की संख्या में तेजी से ब्रिटिशर्स का सामना करते हुए कूद जाती थीं।
           1930 में सविनय अवज्ञा आंदोलन हुआ, इसमें मेरठ की महिलाओं ने भाग लिया। इन महिलाओं में कुछ महिला क्रांतिकारियों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इनमें प्रमुख रुप से दुर्गेश नंदनी, कमला चौधरी, प्रकाशवती सूद, उर्मिला शास्त्री, कुसुमलता गर्ग, विधावती, शांता आदि मेरठ की महत्वपूर्ण नेतृत्वकर्ताओं में थीं। उस दौरान आजादी के संघर्ष के लिए महिलाओं ने दो संगठन बनाए थे, जिनमें 'महिला सत्याग्रह समिति' और 'महिला चरखा संघ' नाम से जाने गए। महात्मा गांधी ने आजादी के संघर्ष के लिए दो अभियान चलाए थे, जिनमें 'जेल चलो, सत्याग्रह करो' राजनीतिक कार्यक्रम था। दूसरा कार्यक्रम 'चरखा संघ' का था, जो रचनात्मकता पर आधारित था इस कार्यक्रम के दौरान महिलाएं सूत कातकर, स्वदेशी वस्त्रों का प्रयोग करके, विदेशी चीजों का वहिष्कार करके विरोध जताती थीं। इन अभियानों को महिला क्रांतिकारियों ने बड़े ही मनोयोग से जारी रखा और कड़ा संघर्ष किया। ये अभियान 1930 में ही हुए, इनका जिक्र उस दौर की सरकारी एजेंसियों की पुलिस रिपोर्ट में भी दर्ज है।
रिपोर्ट में उल्लेख है कि महिलाओं के उत्साह का अद्भुत था, जिस दौरान वे जेल गर्इं थीं, विदेशी वस्त्रों की बाजारों में महिलाओं को देखकर विक्रे्रता अपनी दुकानों के शटर गिरा देते थे।
       1930 से 32 तक मेरठ की महिला क्रांतिकारियों की शक्ति का अंदाजा अन्य तत्कालीन पुलिस अधिकारियों द्वारा लिखी रिपोर्ट से इनके जोरदार और तीव्र संघर्ष का खुलासा हुआ था। यूपी पुलिस के इंस्पेक्टर 'जनरल डॉड' ने इंटेलीजेंस ब्यूरो गवर्नमेंट आॅफ इंडिया को लिखा कि 'इस आंदोलन का एक नया सुप्रसिद्ध तथ्य यह है कि महिलाओं ने बड़ी संख्या में भाग लिया, इसमें संदेह नहीं कि महिलाओं के बिना आंदोलन उतनी तीव्रता से नहीं चल सकता था, जो हमें देखने को मिला।' इसी तरह महिलाओं की तीव्र सक्रियता को देखकर मेरठ के तत्कालीन कमीशनर 'पी डब्लू मार्श' ने लिखा कि 'समूचे आंदोलन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा यह था कि महिलाएं राजनीतिज्ञ बन गर्इं और उनमें बड़ा राष्ट्रवादी जोश देखने को मिला।' महिलाओं के कड़े संघर्ष को देखकर 'वायसराय लार्ड इर्विन' ने कहा कि 'संपूर्ण आंदोलन का एक गंभीर तथ्य यह है कि महिलाओं ने इसका पूर्ण समर्थन किया।' पंडित जवाहर लाल नेहरु ने लिखा कि 'अधिकतम आदमी जेलों में बंद थे, ऐसी स्थिति में एक महत्वपूर्ण घटना यह घटी कि महिलाएं आगे आर्इं और उन्होंने बढ़-चढ़कर आंदोलन का समर्थन किया और भाग लिया।'
       वरिष्ठ इतिहासकार एसके मित्तल कहते हैं कि सविनय अवज्ञा आंदोलन 1930 से 34 तक चला और असहयोग आंदोलन 1920 से 22 तक चला, लेकिन इसके बाद देश में सबसे बड़ा जनअंदोलन यही था। दोनों ही आंदोलनों में भारत ने ब्रिटिश शासन को हिलाकर रख दिया। जिसमें मेरठ की महिला क्रांतिकारियों का तेज और कड़ा संघर्ष महत्वपूर्ण रहा है।