Sunday, September 11, 2011

बेजोड़ इमारत नारी निकेतन

मेरठ,

विभाजन के समय शरणर्थियों के लिए बना नारी निकेतन
नारी निकेतन शहर की बेजोड़ इमारतों में है। यह इमारत मुगल वास्तुकला से प्रेरित है, जो वास्तुकला का बेजोड़ नमूना है। कहा जाता है कि पहले के समय में यह इमारत बेगम समरु क ा महल था। यह इमारत लगभग 100 साल पुरानी है, जो बाद में इलाही बख्श जो समरु के समय के निर्माणकर्ता थे, ने लिया। बाद में यह शरणार्थी ट्रस्ट के हाथ में गई। 1857 के बाद की इमारतों में एक है। जो आज नारी निकेतन की इमारत के रुप में स्थापित है। आज इसी ट्रस्ट के अन्तर्गत देखरेख में है।
 विभाजन के समय पंजाब और पाकिस्तान से लोग आकर यहीं ठहरे थे। इसमें ज्यादातर लड़कियां और महिलाएं थीं, जो बाद तक रहीं। बाद में शहर के अन्य इलाकों में विस्थापित हुए। इसके चारों ओर कई इमारतें थीं जो बेगम समरु की देन थीं। जैसे बेगमबाग, सेंट जोंस स्कूल और सीडीए सेंट्रल बिल्ंिडग। यह इमारतें पहले तो काफी सुरक्षित रहीं लेकिन रखरखाव के अभाव में यह इमारतें खंडहर हो गई हैं। पिछले तीस सालोंं से देख रहा हूं, इन इमारतों को शहर के विकास के साथ इन इमारतों ने दम तोड़ा है। पहले एक शहर था जिसमें ऐतिहासिक इमारतें थीं। जिसे लोग अपने आसपास महसूस करते थे। लेकिन इतने खर्चीले रखरखाव के चलते इनसे पल्ला झाड़ लिया। एक कारण और रहा इमारतें या तो सरकारी तौर पर चलीं गई या तो अतिक्रमण का शिकार हुई। हां जितना बन पाया इस इमारत की देखरेख में शहर के लोगों ने योगदान दिया। स्वतंत्रता सेनानी शकुंतला गोयल ने भी इस संस्थान को अहम योगदान दिया था।
   आजादी के समय से इस इमारत को देख रहा हूं, कांग्रेस के शासन काल में यह इमारत शरणार्थी महिलाओं और लड़कियों के लिए सुरक्षित जगह थी। कांग्रेस के शासन काल में इस इमारत का देखरेख तब के समाजसेवियों ने किया। आलीशान इमारतों के रखरखाव के लिए एक बड़ी रकम की जरुरत होती है। तमाम संसाधनों से महिलाओं क ी सुविधाओं का इंतजाम हुआ । अब रही बात इमारत के मूल स्वरुप को बचाने की इसके लिए इब इसका जीर्णोद्धार हो रहा है। एक सीमा तक तो यह इमारतें प्राकृति से अपने पुख्ता निर्माण की वजह से बचतीं रहीं। आज यह लोगों के बीच से गायब होने की कगार पर हैं। नारी निकेतन की देखरेख या तो ट्रस्ट और प्रशासन करता है। अगर ऐसी इमारतों का संरक्षण समय रहते हो जाए तो शायद हमारी विरासत सुरक्षित रह जाएं।

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