Sunday, September 11, 2011

मेरठ शहर के पुस्तकालय

किसी ने कहा है कि किताबों को पढ़िए, रोज नहीं तो कभी-कभार ही पढ़िए, अगर कभी नहीं पढ़ सकते हैं, तो कम से कम किताबों को छू ही लिया कीजिए। क्योंकि किताबें इंसान की सबसे अच्छी दोस्त होती हैं। हर शहर में इंसान की दोस्त कही जाने वाली किताबों का पुस्तकालय बेहतर ठिकाना होता है। ज्ञान के इन ठिकानों में छिपा होता है एक ऐसा रिश्ता, जिसे पीढ़ियों से हम महसूस करते आए हैं। कहते हैं कि किताबें इंसान की जिंदगी बदलती हैं। इंसानियत के रिश्तों का पैगाम देने वाले वह ठिकाने जहां हजारों किताबें लोगों की अंगुलियों से हमेशा एक रिश्ता महसूस करती रहीं हैं। आइए जानते हैं, शहर में मौजूद जिंदगी के किताबनुमा इन ठिकानों की दास्तां-
    हर इमारतों का शहर के लोगों से अनूठा रिश्ता रहा है, यह इमारत धार्मिक स्थल हो, ऐतिहासिक इमारत हो या स्कूल कॉलेज। ऐसे ही शहर में एक लम्बे अरसे से इंसानी किताबत का लेखा-जोखा समेटे कुछ भी हैं। यह पुस्तकालय बरसों से शहर के साथ बाहर के लोगों के लिए अहम जगह रहीं हैं। इनमें मौजूद महत्वपूर्ण किताबें इंसान से अपना भी रिश्ता बना लेती हैं। इन पुस्तकालयों की शहर में एक खासी अहमियत है। अनेक दुर्लभ किताबों की वजह से पुस्तकालय और खास हो जाता है।
     छात्र, शिक्षक, बुजुर्ग और नई पीढ़ी के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान की कड़ी के रूप में ये पुस्तकालय अपनी मिसाल आप हैं। एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी के बीच सांस्कृतिक धरोहर का आदान प्रदान की भूमिका निभाने वाली यहां की किताबें हर शख्स के लिए ज्ञान का भंडार हैं। कई पीढियों से किताबनुमा जिंदगी का रिश्ता गांठते यह पुस्तकालय सदियों से हमारे बीच हैं। इनमें इंसान की सेहतमंद दिमागों की उपज दुर्लभ किताबें और पांडुलिपियां हर नई पीढ़ी के हाथों में बार-बार आती हैं। लेखकों के विचारों के यह ठिकाने हर किसी की जिंदगी के लिए मुफीदगाह हैं। उन कालजयी लेखों को अपने अंदर संजोये यह किताबें शहर के अहम पुस्तकालयों में आज भी मौजूद हैं। जो हर किसी का साथी हैं। 
शहीद स्मारक संदर्भ ग्रंथालय, इतिहास की किताबों का ठिकाना
शहर के इतिहास का गवाह शहीद स्मारक में एक संदर्भ ग्रंथालय है। यह ग्रंथालय 1997 में संग्रहालय के साथ बना है। ढाई हजार किताबों के जरिये यह पुस्तकालय एक दशक से ज्यादा समय से पाठकों के साथ रिश्ता बनाए हुए है। सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक खुलने वाले इस पुस्तकालय में इतिहास से जुड़ी सैकड़ों किताबें मौजूद हैं। जो मेरठ के अलावा देश के गौरवमयी इतिहास की दुर्लभ जानकारी देती हैं। यहां औसतन एक महीने में करीब 500 पाठक इन किताबों से लाभांवित होते हैं। इस पुस्तकालय से शोध छात्र, साहित्यकार, प्रशासनिक सेवाओं के छात्रों समेत अनगिनत पाठकों का गहरा रिश्ता है।
    संग्रहालय अध्यक्ष मनोज गौतम बताते हैं कि इस संदर्भ ग्रंथालय में देश की कई दुर्लभ किताबें भी हैं। जिसमें 1857 की विजूअल डाक्यूमेंटेशन, आर्किलॉजिकल सर्वे आॅफ इंडिया, ब्रिटेनिया और विलियम टी ग्रेट रिवोल्ट आदि प्रमुख हैं। इसके अलावा विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं के साथ एनुअल रिपोर्ट भी मौजूद है। इसका कोई भी सदस्यता शुल्क नहीं है, यह पुस्तकालय संग्रहालय की देखरेख में चलाया जा रहा है।
-चौधरी चरण सिंह विवि पुस्तकालय
दो दशक पहले विवि के हिन्दी विभाग की स्थापना के साथ शुरु हुआ यह पुस्तकालय शहर का महत्वपूर्ण पुस्तकालय है। लगभग ढाई हजार किताबों से सुसज्जित इस पुस्तकालय में महत्वपूर्ण किताबों के अलावा प्राचीन पाण्डुलिपियां भी हैं। जिनमें घीसाराम, शंकरदास और पृथ्वी सिंह बेधडक जैसे लेखकों की पाण्डुलिपियां शामिल हैं। ज्यादातर हिन्दी साहित्य की किताबों से भरा यह पुस्तकालय विवि के हिंदी विभाग की देखरेख में है। विवि के सभीछात्रों, शहर के बुद्धिजीवियों और अन्य पाठकों के लिए मददगार यह पुस्तकालय पिछले दो दशक  से अधिक समय से लोगों के बीच महत्वपूर्ण पुस्कालय बना हुआ है। रोजाना आने-जाने वाले पाठकों के लिए यह निशुल्क पुस्तकालय है। बाहरी पाठकों को विभाग से अनुमति लेने के बाद किताबें पढ़ने का मौका दिया जाता है।
     हिंदी विभाग के विभागाध्यक्ष नवीन लोहनी के मुताबिक यह पुस्तकालय विवि के छात्रों के अलावा बाहरी पाठकों के लिए अवकाश के अलावा सुबह से शाम तक खुला रहता है। इस पुस्तकालय में अनेक दुर्लभ किताबों का खजाना मौजूद है, जिसमें हिंदी से जुड़ी हजारों किताबें बताई गई हैं। इसके अलावा विभिन्न पत्र-पत्रिकाएं समय-समय पर आती रहती हैं। शहर के कुछ बुद्धिजीवियों ने यहां महत्वपूर्ण किताबों का अनुदान भी किया है।
मेरठ कॉलेज लाइब्रेरी
एक सदी से अधिक का सफर पार कर चुके मेरठ कॉलेज का पुस्कालय शहर का विशिष्ठ पुस्तकालय है। इस कॉलेज के पुस्तकालय का शहर के अनगिनत पाठकों से कई दशक पुराना रिश्ता है।
आसमान महल हैदराबाद की तर्ज पर बना यह पुस्तकालय मूल महल से इक्कीस गुना छोटा है। यह पुस्तकालय पहले परिसर में लॉ बिल्डिंग में हुआ करता था, जहां आज साइकोलॉजी विभाग है। 1945 में यह पुस्तकालय परिसर में स्थित प्राचार्य आफिस में स्थानांतरित हुआ। जब जर्मनी से युद्ध हुआ था, उसी समय की बात है। इस पुस्तकालय का निर्माण हुआ था, इस पुस्तकालय की खासियत है कि यह बिल्डिंग बिना सरिया और सीमेंट के बनी है। ऐसा पुस्तकालय पूरे उत्तर भारत में कहीं नही है, जैसा कि मेरठ कालेज का है। विस्तृत क्षेत्र में फैला यह पुस्तकालय सात दशक पुराना है, कर्नल डेनियल जो उस समय के प्राचार्य थे। उन्होने इस पुस्तकालय का निर्माण कराया था। उस समय देश में शिक्षा के क्षेत्र में बेहद उपयोगी पुस्तकों को इस पुस्तकालय में संग्रहीत किया गया। आज भी शहर की सबसे व्यवस्थित पुस्तकालयों में इसका स्थान है। हजारों महत्वपूर्ण किताबों के साथ यह पुस्तकालय मेरठ कालेज के छात्र-छात्राओं के अलावा हर किसी के लिए सुबह से शाम से तक खुला रहता है। छात्रों के अलावा शोघार्थियों, शिक्षाविदों और बुद्धिजीवियों के लिए यह पुस्तकालय वरदान है।
-राजकीय जिला पुस्तकालय
जीआईसी कॉलेज के बगल में राजकीय जिला पुस्तकालय शहर का सात दशक पुराना पुस्तकालय है। साल में दो बार इस पुस्तकालय के लिए आर्थिक अनुदान, पुस्तकालय प्रकोष्ठ शिक्षा विभाग उप्र से आता है। इस पुस्तकालय की नियमित सदस्यतों लेने वाले पुस्तक प्रेमियों की संख्या 5700 से अधिक हो चुकी है। पुस्तकालय को पाठकों के लिए सप्ताह में मंगलवार और द्वितीय सोमवार को बंद रखा जाता है। पुस्तकालय अध्यक्ष के पद पर 33 साल की अवधि गुजार चुके आरसी निमोकर बताते हैं कि शनिवार और रविवार को यह पुस्तकालय खुला रहता है। क्योंकि लोग अवकाश के दिनों में समय निकाल कर पढ़ने आते हैं। पाठकों के लिए सदस्यता शुल्क 300 रुपये और सामान्य सदस्यों का सदस्यता शुल्क 100 रुपये है। सुबह  से शाम तक खुलने वाले इस पुस्तकालय में हर समय 40 से 50 पाठक  मौजूद रहते हैं। किताबें पाठकों की सहूूलियत के लिए इश्यू भी की जाती हैं, जिन्हे पंद्रह दिनों में वापस करना होता है।
यह शहर का यह काफी पुराना पुस्तकालय है, यहां 5 हजार के करीब किताबें हैं, जिनमें हर विषय की दुर्लभ किताबें भी हैं। 25 पत्र-पत्रिकाएं माह में आती हैं।
-कैलाश प्रकाश स्वतंत्रता संग्राम अध्ययन एवं शोध संस्थान
 शहर में स्वतंत्रता आंदोलन का इतिहास समेटे अनोखा अध्ययन शोध संस्थान पीएलशर्मा स्मारक में है। जिसकी स्थापना 1995 में स्वतंत्रता सेनानी रतनलाल गर्ग और जगदेव शांत ने की थी। इसकी देखरेख प्यारे लाल शर्मा स्मारक की तरफ से होती है। इस संस्थान के प्रबंधक होशियार सिंह सैनी हैं। सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक खुलने वाला यह संस्थान सोमवार को बंद रहता है। इस संस्थान की देखरेख कर रहे पुस्तकालय के हितैषी रमेश चंद शास्त्री बताते हैं कि इस संस्थान में स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ी 800 दुर्लभ किताबें मौजूद हैं। जिनमें भारतीय कहावत संग्रह, स्वतंत्रता आंदोलन, महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरु से जुड़ी अमूल्य किताबें उल्लेखनीय हैं। रमेश चंद बताते हैं कि यहां आने वाले पाठकों से किसी प्रकार का शुल्क नहीं लिया जाता है। अभी भी इस पुस्तकालय में शोध छात्र और स्वतंत्रता सेनानी आते हैं। लेकिन बेहतर रखरखाव और पहले की तरह पाठकों की आवाजाही न होना सभी को खटकती है।
-टाऊन हाल तिलक लाइब्रेरी
करीब 125 साल पूर्व स्थापित यह लाइब्रेरी शहर में महत्वपूर्ण स्थान रखती है। इसकी स्थापना शहर के नामी सरकारी वकील कालीपद बोस ने 1886 में की थी। वह इसके पुस्तकालय अध्यक्ष के पद पर रहे। लगभग 500 सौ पाठकों की सदस्यता वाली इस लाइबे्ररी में 4 हजार 700 किताबों की अमूल्य धरोहर है। नगर निगम की देखरेख और शिक्षा विभाग उप्र के अनुदान से चल रही यह लाइब्रेरी शहर की सबसे बड़ी लाइब्रेरी है।
    मौजूदा अध्यक्ष राजेंद्र कुमार चौहान इस लाइब्रेरी को पिछले तीन दशक से सेवा दे रहे  हैं। वह बताते हैं कि  सुबह से शाम तक खुलने वाली इस लाइब्रेरी में लगभग सौ पाठक रोजाना आते हैं। पाठकों से आजीवन सदस्य के तौर पर 2100 रुपये, सामान्य से मासिक 100 रुपये के साथ 10 रुपये अतिरिक्त शुल्क लिया जाता है। यहां देश की दुर्लभ कि ताबें मौजूद हैं, जिनमेें खासकर अंग्रेजी, उर्दू, हिंदी, फारसी और संस्कृत जैसे विषयों पर आधारित पुस्तकें शामिल हैं। कुछ समय पूर्व तक यहां 1700 ईस्वी के समय की संस्कृत में पांडुलिपियां थी, जो काफी दुर्लभ थीं, जो इतनी पुरानी हो गई थीं कि  जिनका कागज छूने से भी टूट जाता था। दुर्भाग्यवश वह रखरखाव के अभाव में नष्ट हो गर्इं।
  -राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन हिन्दी भवन पुस्तकालय
 तिलक नगर में स्थित पुरुषोत्तम दास टंंडन हिंदी भवन में भी दुर्लभ पुस्तकालय है। यह पुस्तकालय की शुरुआत 1965 में मुख्यमंत्री सुचेता कृपलानी द्वारा हुई। आचार्य दीपांकर, रघुवीर शरण मित्र, डा कृष्णचंद शर्मा के प्रयासों से हिंदी साहित्य सम्मेल्लन प्रयाग के सहयोग से इसकी शुरुआत हुई थी। यहां हिंदी, उर्दू, अंग्रेजी के अलावा संस्कृृृृृत की महत्वपूर्ण लगभग 4000  किताबेंं मौजूद हैं । यह पुस्तकालय पहले परिसर में स्थित एक जगह पर व्यवस्थित तरीके से चल रहा था। लेकिन उस जगह डेयरी बनने की वजह से इसको हिंदी भवन प्रेक्षागृह में स्थानांतरित कर दिया गया। पुस्तकालय की देखरेख कर रहे प्रेम प्रकाश यहां पिछले दस सालों से हैं, वे पुस्तकालय की दुर्दशा के लिए अनुदान का अभाव होना बताते हैं। कहते हैं कि पंद्रह सालों से किताबों में कोई इजाफा नहीं हुआ, दूसरे पुस्तकालय के मूल जगह पर डेयरी बन गई। आज प्रेक्षागृह में ही यह किताबें रखरखाव के अभाव में पड़ी हैं। यह पुस्तकालय किसी जमाने में हिंदी की किताबों के अलावा अन्य भाषा साहित्य के लिए महत्वपूर्ण जगह थी।
          इस पुस्तकालय में शहर के कई बुद्धिजीवियों के साथ लगातार आने वाले शहर के कई समाजसेवी, साहित्यकार, पत्रकार और छात्र आते रहे हैं। शहर के साहित्यकार हरिओम पंवार, सुधाकर आशावादी, धर्मजीत सरन, धर्म दिवाकर के अलावा रतनलाल गर्ग, सरदार अजीत सिंह, वेदप्रकाश बटुक जैसे लोग तमाम गतिविधियों के लिए हमेशा इकठठे होते रहे हैं। यहां समय-समय पर होने वाली साहित्यिक गोष्ठियां, कवि सम्मेलन और परिचर्चाएं सब कुछ खत्म सी हो गई हैं। किसी समय में यहां पाठकों का जमावड़ा लगा करता था, आज सन्नाटा पसरा रहता है। समय-समय पर यहां आने वाले पाठकों के लिए मौजूद दुर्लभ किताबों में राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन ग्रंथ, तुलसीदास ग्रंथ, हिंदी नाट्य साहित्य, हिंदी साहित्य का इतिहास, संपूर्ण गांधी वांडमय आदि उल्लेखनीय हैं।

1 comment:

  1. क्या आप सवतंत्रता सेनानी और बेचारा मज़दूर पत्रिका के संपादक बी. डी. लंदन टॉड को जानते है जिला मेरठ के रहने वाले थे.

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