Sunday, September 11, 2011

बातचीत-अनूप जलोटा, मेरठ

अनूप जलोटा भजन गायन यात्रा के सबसे अग्रणी सारथी हैं और आज भजन को सरलता और सफलता से जनमानस के दिल और आम घरों तक पहुंचाने का बहुत सा श्रेय अनूप जलोटा को जाता है। वह कालीपल्टन मंदिर मेरठ में आयोजित भजन संध्या में आए  हुए थे। उत्तराखंड के नैनीताल में पुरषोत्तम दास जलोटा के घर में जन्मे अनूप जलोटा को संगीत शिक्षा अपने पिता से विरासत में मिली। 10 साल की उम्र से गाना शुरू किया था और अब तक लगभग 5 हजार कार्यक्रम और 1200 से ज्यादा भजन, 5000 से अधिक आयोजन और 200 से अधिक भजन और गजल के एलबम यह कहानी खुद बयान करती हंै, चलिए जानते हैं उनके संगीत के सफर के कुछ अनछुए पहलुओं को।
अपने शुरूआती समय के बारे में कुछ बताइए?
छात्र जीवन बहुत ही अच्छा था, मेरी पढ़ाई-लिखाई लखनऊ से हुई है। कॉलेज के दिनों से ही मेरे संगीत के कार्यक्रम करने लगा था। मैं किशोर कुमार के गाने गाता था, भजन गाता था और जब समय मिलता था तो मै क्रिकेट खेलता था. मुझे क्रिकेट खेलने का बहुत शौक था, अगर गायक नहीं होता तो क्रिकेटर होता।
अच्छा, तो क्या आप क्रिकेट देखते भी हैं ,आज की क्रिकेट टीम में आप को कौन पसंद है?
हां, मै तो बहुत देखता हूं सुनील गावस्कर और किरण मोरे मेरे अच्छे दोस्त भी हैं। पूरी टीम ही बहुत अच्छी है, तेंदुलकर, धोनी, युवराज मुझे बहुत पसंद हैं।
आपके संगीत के गुरू आपके पिता पुरूषोत्तम दास जलोटा रहें हैं, पिता भी और गुरु भी, कैसा रहा यह संगम?
मैने संगीत की प्रारंभिक शिक्षा अपने पिता श्री पुरषोत्तम दास जी से ली है। अच्छा था पर पिता जी बहुत सख्त थे, सिखाते समय वो चाहते थे कि सभी समय से आएं।  उनके पास बहुत से विद्यार्थी आते थे तो उतना समय भी नहीं दे पाते थे. हम जब लखनऊ आए, तो मैने भातखंडे संगीत महाविद्यालय में प्रवेश लिया और अपनी संगीत की शिक्षा जारी रखी। बहुत ही गर्व की बात है कि मै उनका पुत्र हूँ पर जब मैने भातखंडे में प्रवेश लिया था तो सभी कहते थे, अरे इसे सिखाने की क्या जरूरत है. सभी मुझ को बिठा के गाना सुनते थे. जब मैने गाना शुरू किया तो सभी मुझसे बहुत ज्यादा उम्मीद रखते थे.
अपने संघर्ष के समय के बारे में कुछ बताएं?
मेरे विचार से स्ट्रगल का समय, यह शब्द संगीत में होना नहीं चाहिए. इसे ट्रेनिंग का समय कहना चाहिए क्योंकि इसी समय हम सीखते हैं वरना जब नाम हो जाता है तो सीखना बंद हो जाता है व्यक्ति व्यस्त हो जाता है, पैसा कमाने, दुनिया घूमने और पहचान बनाने में। मुम्बई आए थे, तो उस समय आप ने आकाशवाणी पर काम किया वो मेरे शुरूआती दिन थे इस क्षेत्र में।
आपको अपना पहला ब्रेक कैसे मिला और फिल्मों में गाने के बाद भी दूर हैं, क्या वजह है?
मुम्बई के एक कार्य्रक्रम में मनोज कुमार जी ने मुझे सुना उनको मेरा गाना बहुत अच्छा लगा उन्होंने कहा की आप शिर्डी के साईं बाबा में गाइए. मैने गाया फिर तो बहुत सी फिल्मो के आॅफर आने लगे और कुछ में तो मैने गाया भी,क्योंकि मुझे फिल्मो में गाने में ज्यादा आनंद नहीं आता मुझे स्टेज पर लाइव गाने में असीम आनंद की अनुभूति होती है. मैंने बहुत सी फिल्मों में संगीत दिया है, फिल्में बनाई भी है पर स्वयं नहीं गाया. हमेशा दूसरों से गवाया है. अभी भी मैने एक फिल्म बनाई है "मालिक एक" ए साईं बाबा पर है. इसमें जैकी ने साईं बाबा का रोल किया है. इसमें भी मैने कम गाया है ज्यादा गाने गुलाम अली, जगजीत सिंह, पंकज उधास से गवाए हैं।
एक समय भजन मात्र घरों, मंदिरों और धार्मिक सभाओं का हिस्सा हुआ करते थे। आपने उसको अपनी गायकी का हिस्सा बनाया, क्या आप को लगता था, कि भजन को आप इस मुकाम तक पहुंचा पाएंगे?
मुझे बचपन से ही भजन सुनना बहुत अच्छा लगता था, लेकिन  सभी कहते थे कि यह तो साठ साल की उम्र में सुनने की चीज है। मैं उनको कहता था कि नहीं यह गलत है। भजन से प्यारी क्या चीज हो सकती  है, जिसमें आप भगवान के चरित्र का वर्णन करते हैं, मैंने कहा कि ठीक है मैं छोटा हूं और मैं गाऊंगा युवा तो  सुनेंगे। 
अपने इस सुर-यात्रा में पीछे मुड़ते हैं, तो क्या कुछ छूटा सा लगता है?
मुझे एक बात का दुख रहता है कि मेरा नाम जरा जल्दी हो गया। यदि मुझे वो संघर्ष के समय में मिलता तो मैं और अच्छा गाता। जब मैं 27 साल का था तो मेरा एक अल्बम 1980 में हिट हो गया था। यह सफलता का आनंद लेने के लिए यह थोड़ा जल्दी था।  मैं और सीखना चाहता था, सफलता थोड़ा और बाद में मिलती तो मंैने इससे अच्छा किया होता। मुझे लगता है कि मैं जितना पाने के लायक था, उससे ज्यादा पा लिया है, इसलिए मै बहुत ही संतुष्ट हूं।  जब मंै प्रतिभा और प्रसिद्धि को तराजू में रखता हूं, तो मेरी शोहरत मेरी प्रतिभा से भारी लगती है।
आप का नाम गिनीस बुक आॅफवर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज है?
कुछ नहीं, मुझे लगा कि एल्विस केवल अंग्रेजी में गाते थे और मै कई भाषाओं में गाता हूं, तो बहुत से रिकॉर्ड बिकते हैं। गुजराती, मराठी, सिंधी, बंगाली, उड़िया तो बस इसलिए बिकने वाले रिकार्ड्स की संख्या ज्यादा हो जाती है । पहले यह एल्विस के पास था, लेकिने 58 गोल्ड और प्लेटिनम डिस्क के साथ उनका रिकॉर्ड तोड़ा था।
आप इतनी भाषाओं में गाते हैं, आप इन को कैसे सीखते हैं, शुद्ध उच्चारण कैसे करते हैं?
उच्चारण पर बहुत मेहनत करते हैं, भाषा आती नही है गाने के लिए थोडा सीख लेते हैं। गाने के भाव और उसका अर्थ जान लेते हैं, फिर गाते हैं, अभी मैंने एक मलयाली गजल रिकॉर्ड की।  मुझे मलयाली भाषा नहीं आती है,मुस्कुराते हुए कहते हैं।
आज के समय में संगीत और गायन में बहुत परिवर्तन हो रहा है, क्या वजह है?
परिवर्तन का स्वागत है क्योंकि परिवर्तन से ही अच्छे बुरे का पता चलता है. यदि एक ही चीज चलती जाएगी तो उसकी कीमत का पता नहीं चलेगा. परिवर्तन का मतलब यह नहीं कि लोग पुरानी चीजों को भूल जाते हैं। परिवर्तन का अर्थ है कि एक नई चीज दृश्य में आती है, इसको आप ऐसे लें कि परिवर्तन एक मेहमान है और मेहमान तो कुछ  दिनों के लिए आते हंै (हँसने लगते हैं)। परिवर्तन यदि अच्छा है, तो टिका रहेगा वरना चला जाएगा .
आप का पसंदीदा भजन कौन सा है और किस राग में गाना आप ज्यादा पसंद करते हैं?
मेरा पंसदीदा भजन चदरिया झीनी रे झीनी है। मुझे राग गुजरी थोड़ी बहुत पसंद है, इसको गाने में मुझको बहुत आनंद आता है। मेरे अधिकतर भजन इसी राग के आस पास हैं, जैसे कभी-कभी भगवान को भी.... , तेरे मन में राम.... ,ऐसी लागी लगन...... ,जग में सुंदर है दो नाम.... इत्यादि।
आप ने जिस तरह से अपने पिता जी का नाम रौशन किया है ,आगे क्या आप अपने बेटे को भी संगीत से जोड़गें?
मेरा बेटा तेरह साल का है जब वो पांच या छह साल का था, तो उस समय सचिन तेंदुलकर को फरारी कार मिली थी। उसने मुझसे कहा पापा आप फरारी कार क्यों नहीं खरीद लेते। मंैने कहा बेटा यह बहुत महंगी कार है, तो कहने लगा कि फिर गाना छोड़ो क्रिकेट खेलना शुरू कर दो। वो गाना तो नहीं गाने वाला है पर उस को संगीत का शौक है वो सुनता है।
पूूरी दुनिया में शो किए हैं सबसे ज्यादा गाना कहां पर अच्छा लगता है?
ऐसी जगह तो भारत ही है, भारत में कहीं भी गाओ सभी अपने हैं, ध्यान से और प्यार से सुनते हैं। अमरीका में सेन फ्रांसिस्को, जहां गाकर बहुत मजा आता है, क्योंकि वहां पर शास्त्रीय संगीत के बहुत से विद्यालय हैं। अली अकबर खान साहब, जाकिर हुसैन, रवि शंकर जी, इसी  वजह से वहां संगीत के जानकार बहुत हैं। जब वो आते हैं और जिस तरह से लोग गाना सुनते हैं, देखते बनता है। हां हर जगह गाना अच्छा लगता है और सोचता हूं कि कुछ और नए सुनने वाले मिलेंगे। हर कार्यक्रम एक नया अनुभव है, लेकिन आनंद वही पुराना होता है।
गजलों के जानकारों का कहना है, कि आज के गायकों ने गजल को बहुत ही साधारण बना दिया है। गायकी के स्तर को गिरा दिया है, आप क्या कहना चाहेंगें?
किसी भी चीज को जब मार्केट में लाया जाता है, तो उसको सरल करना पड़ता है। लाइफ बॉय साबुन कभी नहीं बिकता यदि उस को सस्ता कर के नहीं बेचा जाता, यही कुछ गजल के साथ हुआ। इसकी मार्केटिंग कुछ ऐसी हुई कि हर इंसान जो कुछ भी सुनता था, उसको गजल समझने लगता था। एक बार मेरा सूरत में कार्यक्रम था, एक गुजराती आदमी मेरे पास आया बोला अनूप भाई आपकी एक गजल ने मुझको दीवाना बना रखा है, उस को सुने बिना में सोता नहीं हूं।  मैंने पूछा- वो कौन सी गजल है भाई, उसने कहा 'मैया मेरी मै नहीं माखन खायो'। तो गजल उस मकाम पर पहुंच गई थी कि जो भी आप को पसंद आए वो गजल है।  मेरे विचार से यह गजल की एक बड़ी सफलता है, जैसे मैं 20 साल पहले एक अमरीकी व्यक्ति के घर खाना खाने गया था तो उस के ड्राइंग रूम में एक बहुत ही सुंदर शो-केस में सितार रखा था, मैंने उससे पूछा कि यह क्या है? तो वो अमरीकी व्यक्ति बोला 'दिस इस रवि शंकर' (हंसते हुए बोले ), यदि हर गाना गजल है और सितार रविशंकर है, तो यह बहुत बड़ी सफलता है।
आप अभी नया क्या कर रहें हैंं, भविष्य क ी योजना ?
मैं वेदों को रिकॉर्ड कर रहा हूं, बहुत कठिन काम है, समय लगेगा पर हो जाएगा। मैं भोजपुरी फिल्में भी बना रहा हूं,  फिल्म रिलीज भी हुर्इं  हैं। जैसे-  'चोर जी नमस्ते' और बाद में 'हमार माटी मा दम बा'  है। बालीवुड फिल्म 'एक-दूजे के लिए',' नास्तिक', 'साई बाबा' इत्यादि में अपनी गायिकी दे चुके अनूप ने बताया कि 1993-93 मोहन सिंह से 'सनम ओ सनम' फिल्म शुरू की थी, लेकिन किसी वजह से वह पूरी नहीं हो सकी,  मैने निमौता के तौर पर रोनित राय को लेकर- 'हम दीवाने प्यार के', जैफी श्राफ को लेकर -'मालिक एक है', दिव्या दत्ता के साथ-मोनिका, सहित 15 फिल्में कर चुका हूं। आने वाले दिनों निर्माता के रूप में दीपा मेहता द्वारा निदेर्शित- 'तेरे मेरे फेर', मिथुन चकवर्ती व ओमपुरी के साथ 'मकसद' फिल्में हैं। आज ड्रीम्ज के प्रोजेक्ट के बारे में उनका कहना था, इस एक्टिंग स्कूल में बढ़िया अभिनय करने वाले युवओं का फिल्मों के लिए चयन किया जाएगा, ताकि उनको वहां पर सीधा जाकर धक्के न खाने पडें।
आज की युवा पीढी जो पॉप और डिस्को की तरफ भाग रही है, क्या वो भजन को भी उसी आस्था से सुनते हैं ?
जी हां, बहुत आस्था से सुनते हैं, उनके मन में ईश्वर के प्रति विश्वास ह,ै क्योंकि जब वो परीक्षा देने जाते हैं तो मंदिर से होते हुए जाते हैं।  डिस्को थेक से नहीं, हमारे भजन के कार्यक्रम में नौजवान (यंग क्राउड) लोग बहुत आते हैं। मेरे विचार से यह कभी भी कम नहीं होगा।

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