Friday, November 9, 2012

आजादी से जुड़े चंद लम्हों की दास्तां कहता तिरंगा


-  1946 में कांग्रेस के आखिरी अधिवेशन का गवाह
-  नेहरू, आचार्य कृपलानी और शख्श्यितों ने फहराया था तिरंगा
        आजादी के समय की तमाम धरोहरें संग्राहलयों में संजोई गई हैं। जिसमें आजादी के समय के तमाम ऐतिहासिक साक्ष्य मौजूद हैं। आजादी से जुड़े चंद लम्हों को एक धरोहर के रुप में मेरठ में भी रखा गया है। 23 नवंबर 1946 में आजादी के पहले मेरठ के विक्टोरिया पार्क में आयोजित कांग्रेस अधिवेशन के दौरान फहराया गया 14 फीट चौड़ा और 9 फीट लंबा तिरंगा फहराया गया था। यह झंडा हस्तिनापुर निवासी देव नागर के पास किसी धरोहर से कम नहीं है। इस ऐतिहासिक झंडे से देश के चंद महत्वपूर्ण लोगों की यादें जुड़ीं हैं। जिनमें पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु, शहनवाज खान, आचार्य कृपलानी और सुचेता कृपलानी के नाम झंडे के इतिहास से जुड़े हैं।
         द्वितीय विश्वयुद्ध में आजाद हिंद फौज के मलाया डिवीजन के कमांडर रहे, स्व कर्नल गणपत राम नागर के परिवार के लिए यह झंडा किसी अमूल्य धरोहर से कम नहीं है। गॉडविन पब्लिक स्कूल में उपप्रधानाचार्य के पद पर कार्यरत देव नागर स्व कर्नल गणपत राम नागर के पौत्र  हैं। वे बताते हैं कि आजादी के पहले विक्टोरिया पार्क में इस तिरंगे को देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू, जनरल शहनवाज खान, तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष आचार्य जेबी कृपलानी  और सुचेता कृपलानी के हाथों फहराया गया था। झंडारोहण के दौरान साथ में गणपत राम नागर भी मौजूद थे।
         गणपत राम का जन्म 16 अगस्त 1905 में मेरठ में केसरगंज निवासी विष्णु राम नागर के घर हुआ था। उन्होंने मेरठ के राजकीय स्कूल से हाईस्कूल और मेरठ कॉलेज से बीए की पढ़ाई की। वे हॉकी-क्रि केट के खेल में शानदार प्रदर्शन के लिए भी जाने जाते थे, इसलिए वे दोनों खेलों के कप्तान भी रहे। उनकी मेहनत, ईमानदारी और ऊर्जा को देखकर मेरठ कॉलेज के तत्कालीन प्रिंसीपल कर्नल ओडोनल ने नागर को सैंडहर्स्ट कॉलेज इंग्लैंड में पढ़ाई के लिए भेजा। वहां वे दो साल तक आर्मी अफसर का प्रशिक्षण लेकर ब्रिटिश आर्मी में 1928 में किंग कमीशन अफसर के पद पर नियुक्त हुए। 1939 में सिंगापुर के पतन पर अंग्रेजों की बर्बरता को देख उन्होंने विद्रोह कर दिया, इससे अंग्रेजी हुकूमत ने इन्हें बंदी बना लिया। रिहा होने के बाद वे नेताजी सुभाष चंद बोस की आजाद हिंद फौज में इन्हें मेजर जनरल की पोस्ट से नवाजा गया। स्वतंत्रता सेनानी गणपत राम नागर के इकलौते बेटे स्व सूरज नाथ नागर भी कुमाऊं रेजीमेंट में 1950 से 1975 तक कर्नल के पद पर रहे।
          गणपत राम नागर के पौत्र देव नागर कहते हैं कि मेरे पिता स्व सूरज नाथ नागर कहते थे कि 'दादा से विरासत में मिला यह तिरंगा मेरे लिए देश की आजादी से जुड़ी धरोहर है। विक्टोरिया पार्क में यह झंडा जब फहराया जा रहा था, उस वक्त मैं वहां अपने पिता के साथ मौजूद था। प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु ने कहा था कि ' हमने इस तिरंगे के नीचे आजादी की लड़ाई लड़ी है, यही वतन का झंडा बनेगा।' इस ऐतिहासिक तिरंगे के संदर्भ में फिल्म डिवीजन दिल्ली ने एक डाक्यूमेंट्री भी बनाई थी, जिसे सिनेमाघरों और टीवी चैनल पर प्रसारित किया जाता रहा है। गणपत राम नागर पर आधारित डिवीजन द्वारा निर्मित डाक्यूमेंट्री फिल्म समय-समय पर प्रसारित की जा चुकीं हैं। उनके योगदान और उनपर किए गए शोध पर पुस्तकें  आज भी मेरठ के तिलक पुस्तकालय में उपलब्ध हैं। स्व कर्नल गणपत राम का परिवार जिसमें स्व कर्नल सूरज नाथ नागर की पत्नी और देवनागर की मां अनुराधा नागर व जुड़वा भाई गुरु नागर सपरिवार हस्तिनापुर डिफेंस कॉलोनी में रहते हैं। जहां चौथी पीढ़ी के सदस्य रहते हैं, वो इस तिरंगे की दास्तां जुबानी सुनते हैं।
        नोट फोटो में  - गुरु नागर के पुत्र विक्रांत नाथ नागर और देवनागर तिरंगे के साथ

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