विद्रोह की गूंज और मेरठ के ठिकाने




गुलामी की जंजीरें जिस वक्त काटी जाती हैं, तो उनकी आवाज में इतिहास की धमक भी सुनाई देती है। 1857 में शुरू हुए विद्रोह की आग में झुलसते हिंदुस्तान को आजादी की जो शांत छांव 47 में मिली उसके पीछे इतिहास की कई घटनाओं की लंबी कड़ियां रही हैं। इन कड़ियों को एक-दूसरे में पिरोते हुए देखा जाना चाहिए कि वे कौन से इलाके, स्थान और इमारतें हैं, जिनमें क्रांति गूंज रही है। मेरठ में ऐसे स्थलों की कमी नहीं है। हम उन्हें या तो भूलते जा रहे हैं या फिर उन पर ध्यान ही नहीं देना चाहते। ऐसे ही कुछ स्थलों के इतिहास को सुनते हुए हमने महसूस की वह आहट जो इमारतों के पत्थरों के बीच से आती है। वक्त के साथ उस क्रांति की आहट अब धीमी हो रही है।
सूरजकुंड पार्क
सत्तावन के दौरान मंदिर, मसजिद, शमशानों और मजारों पर कुछ ऐसे फकीर सक्रिय रहते थे। जिनकी इन ठिकानों के अलावा देशी पलटन के सैनिकों में भी रुचि थी। यह फकीर देशी पलटनों के ही करीब क्यों थे? इसके प्रमाण क्रांति क ी महत्वपूर्ण घटनाओं में मिलते हैं। ऐसे ही फकीर ने मेरठ शहर में प्रवेश किया और सूरजकुं ड को अपना ठिकाना बनाया। घने जंगलों से घिरे इस पार्क में दो मील दूर से देशी सैनिकों को यहां आते-जाते देखा गया। यहां अंग्रेजों के खिलाफ भारतीयों को योजनाओं के लिए इकठठा होने की शांत जगह थी। यहां भारतीयों के आने-जाने और संदिग्ध क्रियाकलापों से शंकित तत्कालीन मजिस्ट्रेट ने फकीरों का डेरा उठवा दिया था। बाद में यह फकीर कालीपल्टन जैसी जगहों पर भी अपनी रणनितियों के तहत भारतीय सैनिकों से मिलते देखे गए। इस तरह से यह जगह क्रांति के उस दौर के लिए महत्वपूर्ण जगह रही है। गढ़ रोड के पास यहां प्राचीन बाबा मनोहर नाथ मंदिर भी है। 1857 में विद्रोह के पहले यहां फकीर आकर रुकते थे। वह फकीर अंग्रेजों के खिलाफ बिखरे हुए लोगों क ो संगठित करने क ी मंशा से ठहरते थे। उस समय देशी सेना के सिपाहियों के अलावा सामान्य नागरिक भी उनके पास आते थे। फकीरों का उद्देश्य अंग्रेजी नफरत को उभारना और भारतीय क्रांति के लिए लोगों को इकट्ठा करना होता था।
कालीपल्टन
शहर में चारों तरफ अंग्रेजों का सख्त पहरा और भारतीयों पर अत्याचार क ी वजह से क्रांतिकारियों के लिए कई ठिकाने अहम थे, जिसमें कालीपल्टन का मंदिर भी रहा है। जहां पूरे शहर में भारतीयों पर कड़ी-निगरानी और चौकसी थी, वहीं यह स्थान क्रांतिकारियों के लिए एंकात में था। सत्तावन की क्रांति के पहले यह जगह क्रांतिकारियों के लिए एक महत्वपूर्ण ठिकाना था। यह मंदिर भारतीय मूल की पैदल सेना की लाइन में आता था, इसलिए भारतीय सैनिकों से मिलने के लिए यहां फकीर के वेश में क्रांतिकारी आते थे। भारतीय पलटन के समीप होने की वजह से इसे काली पल्टन मंदिर कहा गया। अंग्रेज सैनिकों और अफसरों के लिए सभी भारतीय काले थे और इसी वजह से इन सैनिकों की टुकड़ी को काली पल्टन कहा जाता था। आज कैंट क्षेत्र में स्थित यह जगह को औघड़नाथ का मंदिर भी कहा जाता है। काली पल्टन के सैनिक रात के अंधेरे में घने जंगल से घिरे इस मंदिर में क्रांतिकारियों से मुलाकात करने आते थे। छावनी क्षेत्र में सीधे भारतीय सैनिकों से मिलने का मुफीद ठिकाना भी था। यहां क्रांति के नायक चोरी-छुपे सभा कर भारतीय सिपाहियों को अंग्रेजों के खिलाफ खड़े होने के लिए प्रेरित करते थे। मंदिर के पुजारी भी क्रांतिकारियों और सैनिकों के बीच अपनी सहयोग की भूमिका के लिए प्रसिद्ध थे। 1857 की क्रांति से जुड़ी जगहों में कालीपल्टन का मुख्य स्थान रहा है।
पुरानी जेल-केसरगंज मंडी
10 मई को शाम 5:30 बजे तक जनक्रांति अपने चरम पर थी, पूरे शहर में अंग्रेजों के खिलाफ आक्र ोश था। जगह-जगह आगजनी और अंग्रेजों की हत्याएं हो रही थीं। ऐसे में मौका देख चार सौ भारतीय सैनिक केसरगंज मंडी स्थित पुरानी जेल पहुंचे, वहां बंद कैदियों ने जब भारतीय सैनिकों को देखा तो उनके सब्र का बांध टूट पड़ा। भारतीय सैनिकों ने बंद भारतीयों को आनन-फानन में  रिहा कराया। सारे कैदी भाग निकले और शहर में फैल गए। सबने अपने-अपने तरीके से क्रांति के इस युद्ध में सहयोग किया। पूरे शहर में सारे अंग्रेज अधिकारियों से गिन-गिनकर बदला लिया। मेरठ दिल्ली रोड पर केसरगंज अनाज मंडी जेल थी, जो आज भी केसरगंज मंडी के नाम से जानी जाती है। यह जेल 1857 की क्रांति के दौरान कैदियों के लिए थी। क्र ांति के  विद्रोह के समय यहां से 700 भारतीय कैदियों को रिहा कराया गया। बाद में इस जगह को अनाज मंडी की शक्ल में बदल दिया गया।

Comments

shalu awasthi said…
very well written..इतिहास के पन्नों को खोलता एक लेख

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