साक्षात्कार- प्रोफेसर घंमडी लाल मित्तल, फिजिक्स

बचपन में कैसा माहौल मिला और पढ़ाई-लिखाई कै से हुई?
बचपन परीक्षितगढ़ रोड पर जेई गांव में गुजरा यहीं मूल निवास भी था, पिता किसान थे। घर में गाय-भैंस भी पलीं थीं, मेरे पिता का मन था कि मैं खेती-किसानी और जानवरों की देखभाल में उनका साथ दूं। मेरा इन कामों की बजाय पढ़ाई-लिखाई की ओर ज्यादा था, इसलिए पिता से नजर बचाकर दिनभर घर से गायब रहता और देर रात लालटेन की रोशनी में पढ़ाई करता था। हमेशा शहर आने के फिराक में रहता था, क्योंकि शहर में बिजली की सुविधा थी। परीक्षितगढ़ के गांधी स्मारक देवनागरी कॉलेज से हाई स्कूल और 1953 में मेरठ कॉलेज आया यहां  एमएससी तक पढ़ाई की। पढ़ाई में अव्वल था, हर कक्षा में प्रथम रहा, एमएससी में अच्छे अंक प्राप्त करने पर छात्रवृत्ति 'बरसरी '  मिलती थी।
शिक्षण कार्य से कब जुड़े और लेखन कब शुरू किया?
एएस इंटर कॉलेज मवाना में पहली बार शिक्षक बना और 1999 में यहीं से रिटायर हुआ। यहां कृषि भौतिकी विषय के छात्रों को पढ़ाता था, कृषि भौतिकी विषय में छात्र कमजोर थे, क्योंकि उस समय इस विषय से जुड़ी किताबे कम थीं। नगीन प्रकाशन के मालिक भैरव लाल जैन ने मुझे किताब लिखने को कहा। इस विषय से जुड़ी पहली किताब आगरा के रतन प्रकाशन से प्रकाशित हुई।
कुमार एंड मित्तल की किताबों में विशेष क्या हैं?
मुझे जब कृषि भौतिकी विषय पर किताब लिखने को कहा गया, तो किताब के लेखन के संदर्भ में मैंने मेरठ कॉलेज के भौतिकी के विभागाध्यक्ष राजकुमार से संपर्क किया। उनके साथ मिलकर लिखी यह किताब खूब बिकी, जो हमारी पहली किताब थी। लेखन का सिलसिला आगे बढ़ा, 1965 में 'भौतिकी सरल अध्ययन', 1969 में 'नूतन माध्यमिक भौतिकी' लिखी, जिसके 44 संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं। सीबीएससी, आइसीएससी, यूपीबोर्ड में इंटर कक्षाओं के लिए हिंदी-इंगलिश में बारह और स्नातक कक्षाओं के लिए 6 किताबें लिखीं, जिसके संस्करण लगातार प्रकाशित होते रहें हैं। किताबों की खूबी यह है कि भौतिकी की पेचिदीगियों को सरलता से परोसा गया है, आंकिक प्रश्नों में उलझाव नहीं है और भौतिक के मूल ज्ञान से इनकी शुरूआत है। कुमार साहब काफी विद्वान थे, जो मैं लिखता था, वह उसका सुधार करते थे। भौतिक की बारीकि यों पर उनकी पैनी नजर थी। 9वीं, 10वीं और 12वीं कक्षा के पाठ्यक्रम में हमेशा लिंक रखा। अक्सर यह होता है कि छात्र-छात्राएं अक्सर जटिलताओं के चलते किताब बीच में छोड़ देते हैं, लेकिन इन किताबों में ऐसा नहीं था। इसीलिए यह किताबें आज भी चर्चा में हैं।
भौतिक जटिल विषय माना जाता है, कैसे सरल समझते हैं?
मेरे एक शिक्षक थे, आरबी माथुर वह मेरठ कॉलेज में भौतिक के विभागाध्यक्ष थे। वे भौतिक के प्रसिद्ध शिक्षकों में थे, उन्हे पढ़ाने में महारत थी, वह टू द प्वाइंट पढ़ाते थे। उनका कहना था कि छात्रों के लिए मूलभूत ज्ञान आवश्यक है। मैं कक्षा में हमेशा पहले ही पढ़कर जाता था, वह इसलिए कि जो पढ़ाया जाएगा उसकी जटिलताओं का पता चल जाता था। एक बार एक शिक्षक के पढ़ाए गए आंकिक प्रश्न को मैने गलत ठहराया, तो वह आग बबूला हो गए और कक्षा छोड़कर चले गए। लेकिन दूसरे दिन जब कक्षा में आए तो कहा 'यू आर राइट मैं गलत था'। मेरा मानना है कि किताब और शिक्षक एक दूसरे के पूरक हैं। किताब का तरीका एक होता है, लेकिन शिक्षक के कई तरीके हो सकते हैं। यह भी है कि कई किताबों को पढ़ने से जरूरी नहीं कि आदमी ज्ञानी बन जाए। यह चीजें पहले के समय में तो लागू होतीं थीे, लेकिन आज नई शोधों के आने से चीजें अपडेट होतीं हैं, इसलिए कंप्यूटर की भूमिका बढ़ी है। जटिलताएं आज भी आतीं हैं, लेकिन सरलीकरण के तरीके खोज लेता हूं।
भौतिक को छात्र जटिल समझते हैं, क्या वजह है?
छात्रों का इस विषय में रुझान कम होने की वजह जॉब ओरियएंटेड न होना भी है। लोगों में उत्सुकता नहीं रही, वह कुंजी का सहारा लेते हैं, इंटरनेट का सहारा लेते हैं। कम समय में ज्यादा पाने की होड़ में हैं, लेकिन यहां डिवोशन चाहिए जो दिखता ही नहीं। छात्रों को गहराई से अध्ययन करना होगा, जो क्रमबद्ध चले। पहले स्कूल-कॉलेजों में प्रेक्टिकल होता था, प्रयोगशालाओं में शिक्षक यंत्रों के सहारे छात्र-छात्राओं को रचनात्मक तरीके से जोड़ते थे, आज प्रेक्टिकल का होने ही बंद हो गए।
भौतिक में नई किताबें नहीं लिखी जा रहीं हैं, क्या वजह है?
गिनी-चुनी किताबें लिखीं भी जाती हैं तो अधकचरे ज्ञान के साथ लिखी जाती हैं, जो पुरानी किताबों और इंटरनेट पर उपलब्ध ज्ञान के सहारे लिखीं जातीं हैं। यही वजह है कि ऐसी किताबें कारगर ही नहीं होती।  छात्रों की उत्सुकता को शांत करना ही किताब का मूल होता है, जो नहीं हो रहा है। लेखकों को आज के समय में अधिक रॉयलिटी चाहिए, वह अधूरे लेखन के मुहं मांगी रकम मांगते हैं। लोग अध्ययन करने का जहमत उठाना नहीं चाहते, लेकिन आज नए विचारों के साथ लेखन करने जरूरत है।
क्या आपको कभी किसी और क्षेत्र में अवसर नहीं मिले?
मुझे टेलीकम्युनिकेशन में इंजीनियर के पद पर नौकरी मिली। उस समय 60 रुपये की छात्रवृत्ति मुझे मिलती थी, 100 रुपये बुक की ग्रांड मिलने लगी, जिससे पैसों की दिक्कत नहीं थी। अपनी भौतिक विषय की उत्सुकताओं को दूर करने के लिए शिक्षण ही चुना। अध्यापन से पारिश्रमिक मिलता था, बाद में किताबों की रॉयलिटी मिलती रही।
जब भौतिक की जटिलताओं में फंसते थे, तो उस समय आपका मददगार कौन होता था?
कई बार जटिलताओं में फंसा लेकिन अन्य लोगों से मदद लेकर आगे बढ़ा। एक बार किताब लिखते समय जटिलताओं में फंसा, वाक्या भौतिक में नया पाठ्यक्रम आने के समय का है। तो इलाहाबाद के भौतिक शिक्षक सुरेश चंद शर्मा से मदद ली। नाम याद न रहने पर कहते हैं कि नाम याद नहीं लेकिन एक बार आगरा के एक भौतिक शास्त्र के शिक्षक से भी मदद ली थी।

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