तीरग्रान का जैन मंदिर,मेरठ


मेरठ शहर में कई मंदिर हैं, इनमें से कई प्राचीन मंदिर हैं। जो सदियों पुराने हैं, अपने विशाल स्वरुप के साथ एक इतिहास भी समेटे हुए हैं। इसमें से एक मंदिर तीरग्रान मोहल्ले में स्थित जैन मंदिर भी है। यह मंदिर अपने प्राचीन स्वरुप के साथ लोगों के बीच आज भी आस्था का केंद्र बना है। यह मंदिर हस्तिनापुर में स्थित बड़ा जैन मंदिर के समकक्ष माना गया है।
       इस मंदिर को विक्रम संवत् 1668 और 1801 के लगभग का माना गया है। इसलिए अनुमान लगाया जा सकता है कि इसका निर्माण भी 1801 में हुआ होगा। लाल बलूए पत्थर से बना मंदिर 2500 वर्ग गज में बना हुआ है, इसमे 6 वेदी, 89 मूर्तियां है जो पाषाण और धातु से बनी हैं। इस विशाल मंदिर की ऊंचाई गगनचुंबी शिखर को देखकर आसानी से मापी जा सकती है। इस मंदिर का शिखर 125फीट ऊंचा है। इसके शिखर में 13 फीट ऊ ंचा स्वर्ण कलश स्थापित है। मंदिर का शिखर किसी समय दूर से दिखता था, लेकिन बढ़ती आबादी के चलते यहा मंदिर गलियों के बीच छिप गया। आज भी यह मंदिर शहर के सबसे ऊं चे और प्राचीन मंदिरों में गिना जाता है। इसकी प्राचीनता का अंदाजा इसके अंदर जाकर पता चलता है। यहां स्थापित मूर्तियां सदियों पुरानी कला का उदाहरण हैं। वहीं यहां मौजूद जैन तीर्थंकर शांतिनाथ की मूर्ति काफी प्राचीन है, यह मूर्ति सफेद संगमरमर की बनी है।
      यहां मूल मंदिर का निर्माण 3 बेदियों से हुआ है, जिनमें नेमिनाथ, शांतिनाथ और नमिनाथ हैं। इन तीनों मंदिर की सतह काफी ठोस बनाई गई है। इस मंदिर में जैनशैली के चित्रों की छाप देखने को मिलती है। मंदिर की दीवारों के भीतरी सतह पर जैनशैली के चित्रों में तीर्थस्थलों और धार्मिक घटनाओं का सचित्र वर्णन दिखाई देता है। इन चित्रों में अन्य रंगों के अलावा लाल और सुनहरे रंग का प्रयोग अधिक हुआ है। जैनशैली के चित्रों की शृंखला में यह धार्मिक चित्र जैनधर्म का प्रसार करने में सार्थक साबित होती है।
       यह मंदिर जैन तीर्थंकर शांतिनाथ के प्रति आस्था की मिसाल है। धर्म ग्रंथों में विवरण मिलता है कि जैन तीर्थंक र शांतिनाथ का जन्म हस्तिनापुर के राजा विश्वसेन के घर हुआ था। जब यह गर्भ में थे, तभी हस्तिनापुर में किसी रोग से महामारी फैली थी, इनकी मां ने पीड़ित रोगियों पर पानी छिड़का जिससे लोगों को शांति मिली। इसी वजह से इनका नाम शांतिनाथ रखा। यह बाद में तीर्थंकर शांतिनाथ चकवर्ती के रुप में चर्चित हुए। यहीं इन्होने वृक्ष के नीचे बैठकर कैवल्य प्राप्त किया। जहां आज सुम्मेद शिखर बना है यही इनकी निर्वाण भूमि है।
         इस मंदिर के उपग्रह में तीर्थंकर शांतिनाथ की अन्य प्रतिमाएं स्थापित हैं। जिसमें शांतिनाथ की प्रभामंडल वाली ध्यान की चौबीसी प्रतिमा भी है। यह 8वी से 9वीं शताब्दी की है, जो लाल बलूए पत्थर की बनी है। यह प्रतिमा मंदिर से कुछ दूर स्थित कुएं से प्राप्त हुई थी। यहीं एक काले पत्थर की प्रतिमा भी है यह प्रतिमा है। इस प्रतिमा पर इस मूर्ति का विवरण अंकित है जिसके मुताबिक 1887 ईस्वी की है। इस विशाल मंदिर में हर साल अनंतचतुर्दशी के दिन भव्य आयोजन होता है, जिसमें पूजन-अर्चन होता है। इसी मंदिर में 4 प्राचीन कलात्मक रथ रखे हैं, जो सोने के बताए जाते हैं, इन्हे अनंतचतुर्दशी के दिन शोभायात्रा के दौरान निकाला जाता है।

Comments

Khinvasara said…
thanks for the beautiful information.

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