हाथ से सरकती कठपुतली की डोर ......
किसी दौर में लोगों के बीच इठलाने वाली कठपुतली आज लगभग गायब है। मनोरंजन के अनेक साधन विकसित होने के साथ मंच से जहां कठपुतली गायब होती गई, वहीं इसके कलाकारों ने भी जीविका के चलते अपना रुख मोड़ लिया। बावजूद इसके टीवी चैनल्स पर आज भी इसकी प्रासंगिकता है। यह भी सही है कि अब यह गिनी-चुनी जगहों पर प्रचार-प्रसार का जरिया मात्र रह गई हैं। - अनूप मिश्र शायद ही कोई ऐसा हो, जिसे कठपुतलियां प्रभावित न करती हों। हाथ के इशारों पर नाचती-झूमती, इतराती रंगबिरंगी कठपुतलियां दुनिया के सबसे सार्थक संवाद का जरिया रही हैं। अपने आकर्षण के बल पर संवाद करते हुए दर्शक के जेहन में घर कर जाती हैं। यह जहां एक ओर जिंदगी का दर्द बयां करती हैं, वहीं लोगों के चेहरे पर मुस्कान भी बिखेरती हैं। बचपन की अठखेलियां, जवानी की रूमानियत और बुढ़ापे का दर्द बयां करने वाली कठपुतलियों का असर गांव ही नहीं, शहरों में भी महसूस किया जाता रहा है। हाथ के इशारों पर मटकने वाली कठपुतलियां लोकप्रिय होने के बावजूद प्रसार की कमी से जूझ रही हैं। एक जमाना था, जब लोग कठपुतली की प्रस्तुतियों को चाव से देखते थे, लेकिन वर्तमान समय में इसकी डोर कठपु...