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काम के बिना इंसान सिर्फ सांस लेता है, योगेंद्र रस्तोगी, मेरठ
साठ के दशक से आज तक भगवान के जो रूप हम देखते हैं या अपने घरों की दीवारों पर लटकाते हैं, उनमें से ज्यादातर देश के नामचीन धार्मिक चित्रकला के पुरोधा योगेंद्र रस्तोगी के बनाए होते हैं। सात दशक पार कर चुके योगेंद्र रस्तोगी पिछले 50 सालों में हजारों की तादाद में धार्मिक चित्र बना चुके हैं और आज भी वह इस चित्र पंरपरा को गति दे रहे हैं। पेश हैं, उनसे बातचीत के कुछ अंश- -कला से जुड़ाव कैसे हुआ? मुझे बचपन से चित्रकारी का शौक था। 1959 में महात्मा गांधी का पहला चित्र बनाया था। शुरुआती दौर में आॅयल, वाटर कलर और एक्रेलिक माध्यम से चित्र बनाए। शुरू में एक साल में 40 से 50 चित्र बनाए, लेकिन अब उम्र के मुताबिक काम करता हूं, तो तकरीबन 20-21 चित्र बना लेता हूं। अब सिर्फ पोस्टर और एक्रेलिक कलर के माध्यम से ही चित्र बनाता हूं। -आपने किन पत्र-पत्रिकाओं के लिए चित्र बनाए और उपलब्धियां कब जुड़नी शुरू हुर्इं? मैंने कई धार्मिक किताबों के, पत्र-पत्रिकाओं के लिए चित्र बनाए। 1963 में जब चीन युद्ध चल रहा था, तो मैंने एक चित्र बनाया 'लैंड टू डिफेंड'। यह चित्र लोगों के बीच चर्चा का विषय बना। इस चित्र ...
ख्वाहिश है, अजंता-एलोरा के भित्ति चित्रों को टैक्सचर के माध्यम से बनाऊं- वरिष्ठ चित्रकार चमन
वरिष्ठ चित्रकार चमन को बाल शिक्षा परिषद, कला भूषण, आई फैक्स, ललित कला अकादमी के कई पुरस्कारों के अलावा तमाम राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। कला के क्षेत्र में इनका इतना व्यापक असर रहा है कि मदर टेरेसा, पंडित रविशंकर, हरिवंश राय बच्चन, अमृता प्रीतम, सोहनलाल द्विवेदी के अलावा देश-विदेश की कई शख्सियत इनकी पेंटिग देखने घर तक आ चुके हैं। वह कहते हैं, सबसे पहले समाज में हम अपने आस-पास संस्कृति को महसूस करते रहे हैं। समाज जीवन के तमाम रंगों को महसूस करना किताब की तरह होता है। भावनाओं को व्यक्त करने के लिए कला भी एक सार्थक माध्यम है। मुझे बचपन से पेटिंग का शौक था। घर में पहले इस विधा से कोई जुड़ा नहीं था। घर का माहौल काफी अध्यात्मिक था। घर के लोग धार्मिक भावना से जुड़े थे। बचपन से पढ़ाई में ड्राइंग मेरा प्रिय विषय रहा। शुरू से ही पढ़ाई के दौरान मैं अपने से बड़ी कक्षाओं के छात्रों की ड्राइंग बनाता था। कई महत्वपूर्ण पत्रिकाओं में मेरे चित्र समय-समय पर प्रकाशित होते रहे हैं। मैंने 1958 में चमन स्कूल आफ आर्ट स्कूल खोला, जिसमें शहर के तमाम ड्राइंग के छात्र आज भी ...
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