लंबे संघर्ष और मेहनत की दास्तां बीडीएम
सियालकोट में 1925 के दौर में यूबराय कंपनी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान रखती थी। हमारे दादा रामलाल जी कोई काम नहीं करते थे, क्योंकि वे रइसजादे थे। धार्मिक विचारों के थे, वे इंसानियत के लिए प्रसिद्ध थे। उन्हें एक दुकान खुलवाई गई, जो लोगों को मुफ्त-उधार और मदद करते-करते अंत में बंद ही करनी पड़ी। रामलाल के तीन बेटे हुए जिनमें हंसराज महाजन, देवराज महाजन और बनारसीदास महाजन। यूबराय कंपनी लिमिटेड कंपनी थी, जो खेल के उत्पाद इंपोर्ट करती थी। हंसराज महाजन ने मेरे ताऊ ने इस कंपनी में पेशे के तहत 1920 में काम सीखना शुरू किया। वहां उन्होंने ट्रेनिंग ली, बनाने से बिकने तक के काम को समझा। उस दौर में हाकी, क्रिकेट इंग्लैंड से आते थे, क्योंकि अंग्रेजों ने ही खेलों से परिचित कराया। कुछ ही समय में उन्होंने खुद का व्यवसाय शुरू करने की ठानी और महाजन ब्रदर्स के नाम से सियालकोट में 1925 में काम शुरू किया। काम शुरू होने के साथ ही बढ़ने लगा। 1925 से 1947 में व्यवसाय खूब बढ़ा, देश-विदेश से भी लोग आने लगे थे। क्रिकेट का चलन देश में भी शुरू हो गया था, लोग...